हम करे तो भी किस अल्फाज मे तेरे शिकवे करे?
हमारे दरमिंया के फासलेने ना बोलने पर मजबूर किया
मजबुरीया भी हमारी थी तो हम किस को शिकवा करे?
अपनी फितरतने हम ना मिल शके ऐसा समजोता किया
हालत इतने बुरे नही थे के हम कभी ना मिल शके
हमारी प्यारने हमे मर के भी जिने पर मजबूर किया
जाने वाले तुज से भी अब जिंदगी कि क्या दुवा करे
तेरी यादोने 'नरेन' को शायर बनने पर मजबूर किया
दरिया कभी नदी के लिये अपना रुख नही मोडा करते
दरियाने किनारे से नदी को रुख मोडने पर मजबूर किया
(नरेश के.डॉडीया)-------------------------------------------------
जुलती शाखाओ जैसे ख्वाबो में युं मुश्कुराया ना करो
अकसर वहां फुलो भी ख्वाबो की खूश्बूवाले मिलते है
किसी की मुश्कुराहट में युं अपनापन ना देखा करो
अकसर मुश्कुराहट के पिछे गमो के मंजर मिलते है
मुहोब्बत करनेवाले अपने जझबे से ताल्लुक नही रखते
अकसर जझबातो से उलजाने कि फिराक में मिलते है
फांसलो की दुरी से सच्चे मुहोब्बतवाले कभी डरते नही
अकसर मुहोब्बत में लोग बिछडने के लिये मिलते है
अगर मुहोब्बत खुदा है तो सोचसमजकर दुवा करो
अकसर तकदीरवालो को मुहोब्बत में खुदा मिलते है
तेरा हिज्र मेरे नसीब में लिखा है तो कोइ गम नही
अगर में दुवा तेरे नाम से मांगुं तो मुजे खुदा मिलते है
(नरेश के.डॉडीया)---------------------------------------------
ना जाया करो कही भी कश्ती लेकर
तुम्हारे नसीब में कोइ किनारा नही
ना सोचा करो तुम हद से ज्यादा
तुम्हारा जहन में कोइ मशीन नही
...
ना बढाया करो अपनी औकात को
तुंम खुदा से ज्यादा कुछ भी नही
ना छेडॉ राग जो किसी को पंसद नही
तुम्हारे सुर मे कोइ ऐसा दम नही
ना करो ऐसी बाते लोगो को सामने
कुछलोग जहन से अपाहिज होते नही
ना करो शेरो-शायरी मे बाते ज्यादा
सब के मिजाज शायराना होते नही
ना लिखा करो ऐसी किताब'नरेन'
पढ़ेलिखो के पास आज वकत नही
(नरेश के.डॉडीया)
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ना था जुनु-ए-अल्फाझ तो हम दहेशतो में जिते थे
अब तेरे नाम से हम महेफिलो में दो गज उचे फिरते है
ना था कुछ हमारे दरम्या और ना थी कोइ गुफतुगुं
गुफतुगु के बाद हम वकत को जेब में लेकर फिरते है
मरते है तेरे जल्वे फिरदोस पे हम बडे शोख से
अब हम जन्नत के बादशाह का गुमान लेकर फिरते है
कहा से जहन मे हुस्न और गजल का शोख आया?
तुम्हारे ख्यालो में हम शायराना मिजाज लेकर फिरते है
तुम्हारे इश्क के बाद चमन में जाने से डरते रहेते है
वहां तुम्हारे हुस्न से जले हुवे गुल मुह छीपा के फिरते है
जानेहयात, अब मेरे जिगर में इतने वलवले है के,
नसो में लहुं के कतरे तेरे नाम से दरिया बनके फिरते है
जित जाये'नरेन'को ऐसा नसीबवाला आजतक मिला नही
अब मेरी जिंदगी को तेरे नाम पे दाव पे लगा के फिरते है
(नरेश के.डॉडीया)
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एक हुस्नपरी मेरे घर के सामने से रोज गुजरती थी.
आज वोह रास्ते कां मंजर कब्रस्तान सा पया गया.
वोह चुडी की दुकान से अकसर चुडी-बिंदी खरीदती थी.
वहां मैने चुडी खरीदी थी वोह पुराना बिल पाया गयां
वोह जरुखे से रोज मौसम का मुआयना करती थी
वहा सुफीबंदे को सनम के लिये भटकता पाया गया
वोह चोराहे पे जहां चार आंखो की गुफतुगु होती थी
वहां अब दों आंखो में इंतजार का मंजर पाया गया
वोह् जहां से मुडे थे उन रास्ते का पता किया गया
वहां मेरे आंसुओ का जखिरा बिनवारसुं पाया गया
उस घटनास्थल कां बारीकी से मुआइना किया गयां
'नरेन'वहा तेरी तस्वीर का आधा टुकडा पाया गया
(नरेश के.डॉडीया) ---------------------------------------------------
मुजे मालूम है तुंम मेरे नही बन शकते फिर
मेरे चमन में गुल बन के कयुं खिलते रहेते हो?
तुंम मुज से सात संमदर दुर रहेते हो फिर
जाने-ए-हयात मेरे दिल मे कयुं उछलते रहेते हो?
मुज से मिलने सामने तो कभी नही आये फिर
तस्सवुर में लगातार होंसला कयुं देते रहेते हो?
गम भूलाने मे लोग मैयकदा मे पडे रहेते है फिर
मेरी गजलो में कयुं कैफ-नशे बनके छांये रहेते हो?
मुजे सताने का एक भी तरीका बाकी नही रखा फिर
जान-ए-तम्न्ना आंखो के कयुं तारे बन के रहेते हो?
माना के तेरे रास्ते से मेरे हर रास्ते अलग है फिर
हमसफर का सांया बन के कयुं साथ चलते रहेते हो?
जिंदगी संवारने का कोइ तरिका मुजे आता नही फिर
मेरी जिंदगी को कयुं दुल्हन की तरह संवारते रहेते हो?
(नरेश के.डॉडीया)
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एक दौरा था दिल लगता नही था तुम्हारे बिना
रस्म नही अपनी यादो को मिटाने के लिये आ
जख्मो को किताबो के पन्ने मे सजा के रखा है
वही जख्मो की किताब को जलाने के लिये आ
...
एक बार में कहां करता था मेरी तकदीर है तुं
वही लकिरो मे तेरा वजुद मिटाने के लिये आ
हम दोनोने मिलकर उम्मीदो के महेल बनाये थे
वोह उम्मीदो के महेलो को गिराने के लिये आ
बरसो से मुश्कीलो से बचकर जिंदगी गुजारी है
आज मुश्कीलो की राह पे छोडने के लिये आ
कभी ना उतरे ऐसा शराब तेरी आंखो से पिया था
अहेसान कर दो,मेरी आंखो को रुलाने के लिये आ
जिंदगी की राह में जब मेरा रास्ता खत्म हो जाये
जुठे ही सही,मेरी कब्र पे आसु को गीराने लिये आ
(नरेश के.डॉडीया)
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ना मांग मुजसे और ज्यादा
तनहाइआ को में एकलोता वारिश हुं,
ना मांग मुजसे खुशीया और ज्यादा
गमो के तले पालपोषकर बडा हुवां हुं
ना मांग मुजसे लम्हे और ज्यादा
समय की शाख से पतझड मे गिरा पता हु,
ना मांग मुज से हसी के पल और ज्यादा
आंसु के संमदर मे जिंदगीभर तेरता रहा हुं,
ना मांग मुज से मौसम के रंग और ज्यादा
मुरजाये हुवे फुलो के घेरे का सरदार हुं,
ना मांग मुज से सांसो की नमी और ज्यादा
मीट्टी मे से निकला एक बेजान पुतला हुं,
ना मांग मुजसे शुकुन और ज्यादा
जालिम जमाने ने जलाया हुवा ख्वाब हुं,
ना मांग मुज से छाव और ज्यादा
सुरज की पहेली किरन का सताया हुवा हुं
ना मांग मुज से प्यार और ज्यादा
बेवफाइ के दामन मे जडा हुवा पेंबद हुं,
ना मांग मेरे खुलासे और ज्यादा
मकसद बिना घुमता बेजान मुसाफिर हुं.
(नरेश के. डॉडीया)
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अपनी सांसे बचाकर रखना
कभी मुजे जिंदा होनेमे काम आयेगी
अपनी बाहोका हार सजाकर रखना
कभी मेरे गलेके लिये काम आंयेगे
अपनी आंखोका नुर बचाकर रखना
कभी मेरे जहांको रोशन करनेमे काम आंयेगे
अपनी पलकोको सजाकर रखना
कभी मुजे पनाह देनेमे काम आंयेगे
अपने पालवको फेलाकर रखना
कभी मेरी जिंदगीमे रंग भरनेमे काम आंयेगे
अपनी नजरोको जुकाकर रखना
कभी हमारी नजरोसे मिलानेमे काम आंयेगी
अपने लब्झोको छुपाकर रखना
कभी मेरी कविताके लिये काम आंयेगे
अपने होठोकी लाली बचाकर रखना
कभी गुलाबोको शरमानेमे काम आंयेगे
अपनी प्यास बरकर्रार रखना
तभी तो इस बादलको बरसने काम आयेगे आप..
(नरेश के. डॉडीया)
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मसला जब भी चला है खूबसूरती का,
फैसला सिर्फ आपके चहेरेने कियां है.
मसला जब भी चला है गुलाबो का,
फैसला सिर्फ आपके होठोने किया है.
मसला जब भी चला है नशेके तोड का,
फैसला सिर्फ आपकी आंखोने कियां है.
मसला जब भी चला है रोशनाय जहां का,
फैसला सिर्फ आपके चहेरेकी रोशनीने कियां है.
मसला जब भी चला है कालि घटा का,
फैसला सिर्फ आपके उडते बालोने कियां है
मसला जब भी चला है एक पनाह्गाह का,
फैसला सिर्फ आपकी नर्म बाहोने कियां है.
मसला जब भी चला है दिवानगीक़ी हद का,
फैसला सिर्फ हमारी दिवानगीने किया है
(नरेश डॉडीया)
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कुछ मंझर हमे भी याद आता है,कुछ तुम्हे भी याद आता होगा,
कुछ सालो पहेले हम दोनोने मिलके एक वकतका पेड बोया था.
हम दोनो सांसोकी नमीसे वोह पेडको हमने सवारा करते थे,
शाखाए नीकल पडी थी चारो तरफ,फुलोकी बेलेक़ी झडी लगी थी.
तेरे बालोकी उडती परछायके साथ अकसर सुरज डुबता रहता था,
रातके साये जम जाते थे तेरे बालोकी फेली हुवी घटा घनघोर.
होठोकी प्यास बुजाता था जैसे कोइ प्यासा को मीले पनघट,
सांसोकी सरगरमिया परवान चडती थी वोह वकतके पेडके सायेमे.
सुबहके सुरजकी केशरी किरनोके साथ उठता था भरके रंग तेरे अंगमे,
तब भी एक प्यास रहेती थी उस दिनकी सामकी इंतजारीका.
हम दोनोके कइ कारनामेसे रोशन हुवा करता था आशीयाना हमारा,
चल आज फिरसे वोह वकतके पेडसे एक लम्हा फिरसे चुराले.
(नरेश के. डॉडीया)
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यादोके साये कुछ लंबे से हो जाते है
जब अंधेरी रातमे चांद निकलता है
मिलोके फासले कुछ एसे बढ जाते है
जैसे खुदाने हम ना मिल शके एसी कोइ साजिस की हो
अकसर ख्यालोमे खोया रहेता हुं हरदम
जैसे मेरे इस दर्दकी दवा नहीँ कोइ
कारवा मंजिलसे भटके भी तो कैसे
खुदाने एक ही तो रास्ता बनाया
जो सिर्फ तुम तक जाता है
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तेरा सौंदर्यका झरा एक बार फिरसे छलक उठा है,
वोह शोरो गुल कुदरतके कारनामे से होता रहेता था.
एकबार फिरसे तिलमिला उठा है तेरे सौंदर्यके जादुसे,
झरनोके शोरोगुल फिरसे उठे है तेरी चुडीकी खनक से.…
सौंदर्यका पडदा एक बार फिरसे उठ गया है तेरे चहेरे से,
चांदने कयो तुम्हारी तरफ देख लिया चांदनीको छोड के.
हर पुनमकी रातको मेरा रकिब तेरे आंखोमे चमकता है,
तेरे खुबसुरत अंदाज परवान चड गये मेरी एक भुल से.
मेरी एक आहसे तुम्हारे चेहेरेपे शबनमकी नमी बिखर गइ,
फिसल गया था में एक बार वोह शबनमकी नंमीसे.
अनजाने मे नजर चड गइ खिलते गुलाबसे गुलाबी होठ,
चुमनेसे फिरसे एक बार शबनम जम गइ गुलाबी होठो पे.
पुछा जो हमने आपसे इस जल्वारेझ हुश्नका माइना क्या है,
आपने फरमाया बादल कभी पुछके बरसते है इस धरती पे.
(नरेश डॉडीया)
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इन उदासीओ के मौसम मे कहां कहां आप जांओगे?
जो कहानी मे तेरा नाम नही उसे तुम पढ पाओगे?
कोइ हमसफर नहीं मिलेगा,तुंम कही खो जाओगे!
जख्मो कां जो बोज है तुम अकेले कैसे उठा पाओगे?
जो रास्ते चुने है उसे पार कर के कहां जाओगे?
मंजिल का पता पुछोगे तो गलत ठीकाना पाओगे!
चरागो की रोशनी में तुंम अंधेरा बन के खो जाओगे!
जो चराग जलने के आदी नही उसे कैसे जला पाओगे?
आरझुओ का जखिरा तुंम अकेला छोडकर कहां जाओगे?
वो तुम्हे भुल चुका है ये जानकर’नरेन’तुंम जी पाओगे?
(नरेश के.डॉडीया)
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ये तिलस्मी चांद जो रो रात को ख्वाबो मे आता है
आंखो मे एक अजब सा महेकता फुल खिलता हो जैसे
वो प्यार ऐसे करता है जैसे ना किया किसीने ऐसा
वो बाहो मे लपकता है शर्दीमे कंबलका लिपटना जैसे
अरमानो की नगरी मे जैसे कोइ होली खेल रहा ऐसे
सितारे जेब मे भर लाते रंग कही तरह के जैसे
उदासी के घेरे हर रंग मे एक जान भर जाता है ऐसे
दफन हुवे हर ख्वाब को फिर से जगा जाता है जैसे
नशीली होती है रात जैसे मेरे घर मे मैयखाना जैसे
पैमाने छलकते हर रंग ए नूर के उसकी आंखो मे जैसे
मिलाती आंख से आंख एसे हर साज से नइ धुन जैसे
आंखो आंखो मे हम संगीतकी नइ सरहद छु लेते जैसे
जुल्फे रूखसार में एक काला जादु फेलाती देती है एसे
जलवा नजर आता है उसका नागिन कचुली छोडती जैसे
बेखोफ हुस्न का नजारा रोशनी फेलाता है सुरज हो ऐसे
रात यु ही कट जाती है मेरी एक नन्ही जिंदगी हो जैसे
(नरेश के.डॉडीया)
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तेरे कमाल की हद कब कोई इन्सां समझा
उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा
हुस्न और नजाकत की बाते इस कदर समजा
शर्मशार हुवा बचपन मेरा जब तुजे समजा
कइ बार तेरे मतलब को बेमतलब समजा
समज मे मेरी तब आया जब तुजे समजा
ना समजा तेरी मुहोब्बत को अब तुं समजा
तुने बांहो मे लिया तब सब कुछ समजा
ना खुल शका तेरी इल्मी बातो का राज
होठो से लगाया जब तुने तब राज समजा
इस कदर में हेंरान हुं इस हुस्न के फनकार से
मेरी जवानी को हसीन फन के काबिल समजा
नही उठते है कदम मेरे मयखाने की और
बहेका हुं जल्वे से उस के साकी कया समजे
(नरेश के.डॉडीया
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तुम हक्कीत नही एक खूबसूरत फसाना हो
कभी नही मिलने वाले एक ख्वाबी दुनिया हो
जो फेल जाती है ख्वाबो मे खूश्बूकी तरह
तुम रोज रातको खिलनेवाला एक गुल हो
कयुं देखती रहेती हो आयने में बार बार
खूबसूरती भी जल जाये वोह जल्वा हो
कभी नही खत्म होने वाली एक दांस्ता हो
हर पन्नेमे छपा हुवा खूबसूरत आयाम हो
कभी कभी सोचता हुं के तुम्हे भूल जांउ
कैसे भूलू!जिदा रहेने की तुंम उम्मीद हो
ना सपना हो तुम,ना कोइ हक्कीत हो
जो भी हो’नरेन’की खूबसूरत गझल हो
(नरेश के.डॉडीया)
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इक लम्हा गुजर गया जो याद मत दिलाइए
ग़ज़लों की झडी लग गइ थी दौर ए खासमे
इक पहेचान ना जाने कैसे दिलमें बस गइ
थमा न वक़्त खुश्बूओ का उनकी पनाह में
फूलों को झुकाती चमन में अपनी अदा से
खुश्बुओ के सैलाब लाती वो बहार में
इक लम्हा रुक जाता था हर इक निगाह में
इश्क थम सा जाता था हुस्न कि पनाह में
जुल्फे जैसे घटाओ को मिलने कि दावत
इश्कको भीगने कि ख्वाइश इन घटाओं में
लबो- गुल ने छेड़ दिया भंवरों का जूनून
गुलशन हुआ है शर्म सार उनकी हयात मैं
कई शायरों कि शायरी बन गयी वो नज़र
गज़लों -नज़्म कि बरसात हुई इश्के दौर में
उनके इश्क का खुमार मेरी गज़लों कि जान था
अंदाज़े बयां मिल गया उनके हुजुर में
दरों दीवार को हो जैसे उनकी खिदमत का गुमान
गज़ले मेरी बयां करती वो हाले दिल ये इश्क में
आज भी है उनकी खुशबू मेरी ग़ज़लों कि जान
वो चल दिए छोड़ मुजको, किसी महलों कि चाह में
(नरेश के.डॉडीया)
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सपनोके रंगोकी बहारमे खिले फुलोको तुं चुनले
जो जिंदगीने दिया है उसे जाम समजकर पी ले
समयको तुं पैसेसे खरीद लेगा,अपना शकुन बेचदे
गलेमे अटकी हर सांसको बचाले,जबांको बंद करदे
तेरी फितरतको एक बार बदलदे,बादलको तरसनेदे
आंखोमे तेरी नमी है उसको ना रोक,उसे बरसने दे
मिलते है गम हर तरहके खुशीयोके बाझारमे
दामनको अपना बचाले जो मिले उसे गले लगाले
किसके ख्यालोमे भटकता है गाफिल मारा मारा
जीस परीको ढुंढ रहा है ,वोह तेरी बगलमे है
तुं गझलकार है जिंदगीको युं गवारा ना कर ‘नरेन’
ख्यालोमे जिना छोडदे,नही खिलते फुल सहेरामे
हर किस्सा कभी पुरा नही हुवा मुहोब्ब्तके पन्नेपे
अंजाम सोचले एकबार,कोइ जिंदा वापीस नही आया
समसेर उठाके हर कोइ लडके शहीद होता है जंग़मे
एक आगाझ करदे,कलमकी नोक सजाले इस जंगमे
रास्ते सब खुले है,तुजे लडना पडेगा किसीके वास्ते
मरते है सभी लोग ,तुं भी एक बार मरके दिखा
इतिहासको फिरसे एकबार पलटके दिखादे सरेआम
इंतजार है तवारीखको पन्नेको,तेरे नामसे शुरुआत हो.
(नरेश के. डॉडीया)
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तेरे खूबसूरत चहेरेको रसूल कहेता हुं
तेरी मेरी बाते बाउसुल बयां करतां हुं,
चांद सितारेको तेरे पैरोकी धुल कहेता हुं
चमनकी हर कलीको तेरी महेक कहेता हुं
इतेफाकन तुम्हारे मिलनेका वजुद को
उसे मे जिंदगीका हुसुल कहेता हुं
आपकी सांवली सूरत और हंसी को
रसुल ए पाक का कारनामा कहेतां हुं
आपके अंदाज ए गुफतुगु को में
गालीबकी गझलकी पेसगी कहेता हुं
आपकी जुलती शाखाओ जैसी चाल को
दिलको बेहेलाने वाली सागर कहेता हुं
आपका मेरी जिंदगी मे आना तकदीरकी
हारी बाजी को मेरी जित कहेतां हुं
आज तुम मेरे अपने बन गये हो
जो ना हो शके ऐसा करिश्मा कहेता हुं
(नरेश के.डॉडीया)
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मनावो जस्न मेरे यारो मेरी नाकामी पर
मौसमने बदला रग़ कुछ इन्साकी खातिर
महोब्ब्त भी क्या अजिब चीज है यारो
पानीकी तरह हथेली गीली कर जाती है
मनावो जस्न मयखानेमे जोस ए झूनूसे
आज गझलकी मजबूरीया का नाच है
मनावो जस्न यारो लखनवी तेहजीब से
दुवा ना करे,तवायफ की घुंघरुमे आजान है
मनावो जस्न यारो इमांको छोडो धुप मे
हुस्नवालोकी खिदमतमे इंमा नंगे पाव दोडते है
मुहोब्ब्त ए फरेब जाननेकी इन्साकी फितरत नही
हर किसीकी अपनी अपनी जलती हुवी आग है
हर कही रोशनी जलती है सितारो की खातीर
लोगो को हुस्नकी पनाहवाली रातका ख्याल है
(नरेश के.डॉडीया)
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एक खूबसूरत औरत एक आदमी का हिस्सा बन जाती है
लोगो के मुंह पे बहुत सी खूबसूरत कहानिया बन जाती है
उसे पाने की उम्मीद लिये बेठे दिवानो को जिने के लिये
उजालेमे नये मयखाने की राह् रोशन हो जाती है
कोइ दिवाना बन जाता है शायर तो कोइ बनता है फकिर
तकदीर से एक रोशनी हमेशा के लिये गायब हो जाती है
कही किस्से बन जाते है,कुछ जाने और कुछ अनजाने
गझल लिखे कागझ आंसु मे तेरती कस्ती बन जाती है
उम्मीद पे टीकी रहेती है ये दिलजले और दिवानो की दुनिया
शायरो की गझले सुन के दिल एक से आह निकल जाती है.
दर्द मुहोब्बत का बेवफाइ के किस्से मे तबदिल नही होता
‘नरेन’दर्द की लकिर गझल से वाह से आह तक ले जाती है
(नरेश के.डॉडीया)
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उस के आशिकाना मिजाज से बहुत परेशान रहेतां हुं
मुजे कहेतां है,तेरी ख्वाहिशो क़ी माला गुनता रहेता हुं
वोह हमे होंसला देकर कहेता,है इस लिये दूर रहेता हुं
फांसला बहुंत है लेकिन कहेतां है,तेरे दिल में रहेतां हुं
वो कहेता है,तेरे ख्वाबो को अकसर छेडता रहेता हुं
पुछा तो हसके बोला,इसी बहाने तुजे जगाता रहेता हुं
गुफतुगु नही हमारे दरमियां फिर भी गूनगूनाता रहेता हुं
हक्कीत बन गइ है फसाना,फीर भी हसतां रहेतां हुं
दुर रहेके भी जान लेने की अदा की तारिफ करता रहेतां हुं
ये उनका शोख है या हुन्नर,वो सोच के हेरत मे रहेतां हुं
मालूम है वो आयेगा नही,फिर भी उम्मीद पे टीका रहेतां हुं
वतन से दुर् भी उनके नाम का एक दिया जलातां रहेतां हुं
(नरेश के.डॉडीया)
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कोन सी अजिब तनहाइओ का आलम तेरी गैरमौजुदगी मे है
लम्हो का एक खूबसूरत मौसम तेरे जाने से कयो बित चुका?
जिंदगी गुजारने का कोइ तरीका भी कहां आता है तेरे बगर
शाम ए अवध की नवाबी शानो-शौकत का दोरा बित चुका
...
अधुरी कुछ हसरते बची थी वोह भी अश्केरवां मे बहे गइ है
निगाहोमे जो कहानिया है वोह पुरी करने का लम्हा बित चुका
लगता है तकदीर लिखनेवालेने कलम भी शायर की ली होगी?
लकिरोमे पतजड का मौसम आ चुका गुलाबी मौसम बित चुका
आपनी आरझु को थोडा थोडा थकने का भी मौका दिया करो
‘नरेन’उनके जहन में तेरे ख्यालका मौसम कब का बित चुका.
(नरेश के.डॉडीया)
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फिर जहन में दर्द की तमन्ना जाग उठती है
तुम्हे फिर एक बार इश्क की तमन्ना जागे
देखो,खुल्ला रखा है सब दरवाजे और खिडकिया
तुं फिर से मेरी चोकट पे पावं रखे ऐसी तमन्ना जागे
होंसले अभी भी बुंलद रखे है गझल की खातिर
दर्द से भरी गझल को पुरी करने की तमन्ना जागे
बिना परवाझ के परिंदे,बिना अश्को के आशिक
गझल सुन के किसी के मन मे दर्द की तमन्ना जागे
चलो ‘नरेन’आज फिर से पुराने जख्मो को याद करे
हसते हुवे आशिक को रुलाने की फिर से तमन्ना जागे.
(नरेश के.डॉडीया)
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अजीब सी कुछ तनहाइ तेरे दामनसे छुटके आयी है
किस अदा से छोड गइ है मौसम तनहाइ की?
अगर जुदा होने का असर वकत से दुश्मनी होती तो
मिलने सी भी खत्म कहा होगी मौसम तनहाइ की?
तुजे मालूम है के मे एक अकेला नही लड पांउगा
होंसला कयो नही देता जब मौसम हो तनहाइ की
बात लगती थी हर एक भली भली,भरी भरी सी
हरघडी कयो बोखलाता हुं जब मौसम हो तनहाइ की
चंद लम्हो की बात होती तो मैयखाने मे बिताते
मेरी प्यास कैसे बुजेगी जब मौसम हो तनहाइ की
अकसर जुदाइ मे लोग खुदा को याद करते है
उनको याद करतां हुं जब मौसम हो तनहाइ की
(नरेश के.डॉडीया)
-------------------------------------
चलो आज कोइ नौजवान हसिनाकी नजरो से
रोशनी चुरा के सितारो को हैरत मे डाला जाये
चलो आज कोइ नौजवान हसिना की बिंदीया मे
किस्मत के अलग अलग रंग भर दिये जाये
...
चलो आज कोइ नौजवान हसिना की पलको के
तले एक खूबसूरत आशियाना बनया जाये.
चलो आज कोइ नौजवान हसिना के साने पर
बालो को गिराकर मौसम को शराबी बनाया जाये
चलो आज कोइ नौजवान हसिना के लबो से
लाली चुराकर गुलाबो को परेसान किया जाये
चलो आज कोइ नौजवान हसिना की बलखाती
चाल के साथ चलते चलते एक समा बांधा जाये
चलो आज कोइ नौजवान हसिना की लकिर से
अपनी लकिर मिलाकर अपनी तकदीर बदली जाये
(नरेश के.डॉडीया)
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परिंदे की इतनी उची ऊडान से युं इतना ना जला करे
ऐसा शोख मत रखो के किस्मत को शुकुन मिले नही
ये शायरो की दुनिया मे सोच समजकर कदम रखा करो
बारुद के ढेर पर चलने के तुम्हारे पैर अभी आदी नहीं
रंजिसे है बेसुमार फीर भी तुं किसी से मुकाबिल नहीं
हर जगा खूशी मिले ऐसी तेरी किस्मत में लिखा नहीं
युं ना सताया करे हर किसी को दुश्मन समज कर
खैर मना,हर दोस्तकी दुवा मे तेरा नाम सामिल नहीं
जवानी में इतनी सोला मिजाजी और गुरुर अच्छा नही
'नरेन'बुढापे की असर तक लाजमी रहे तो अच्छा नही.
(नरेश के.डॉडीया)
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कयों इस बेंरंग सी तस्वीर में जान भरने की कोशिश करते हो?
इस मस्कत में तुम्हारी सांसो को मरम्मत की जरुरु पड गइ है
आपके दिदार के लिये जो पलके तरसती थी आज वोह बरसती है
तुम्हारे ख्यालो के एक लंबे अरसे पर वकत की चादर चड गइ है
नजरे तुम्हारी कभी उठती नही थी,उस बहारो के नजाकती दोरे मे
खुल्ली निगाहो से मौसम ए बहार लुट गइ और खिंजा रहे गइ है
बरसो से तुम्हे इतंजार सा रहेता है तुम्हारी यादो की कब्र पर आये
वोह कौन सा गुल लेके आये,उनकी तो जिंदगी मे बहार चली गइ है
यु ही नही जलते रहेते है किसी की आंखो मे तुम्हारी यादो के चराग
‘नरेन’उनकी आंखो में आज भी तुम्हारी पुरानी तस्वीर जड गइ है
(नरेश के.डॉडीया)
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कुछ अरसा बित गया है वौह कैसे है कुछ खबर नही है
लगतां है उस के ख्यालो मे कुछ यादे अभी भी जिंदा होगी?
चलो चलते है उस गुलशने पे जहां अकसर मुलाकते होती थी
शायद कुछ पेडो को हल्की सी हमारी मुलाकाते याद होगी?
चलो आज उस के शहर जाये कुछ मिलने के बहाने चले
पता करते है,नाजनीन के जहन मे हमारी मौजुदगी होगी?
बोले,तुम्हारे आने से इस गरीबखाने मे एक बहार सी छायी है
बोले,लग रहा है मुजसे मिलने की खलिश छुपी हुवी तो होगी?
जिक्र हमाराभी होता होगा तब आंखो मे नमी तो होगी?
तुम्हारे ख्यालो मे अकसर हमारी महेफिल भी जमी तो होगी?
अपनी हसी में कभी कभी मेरी बात दबीदबी सी निकली होगी?
इतना इठला के चलते हो राहो मे जरूर मेरी बात निकली होगी?
(नरेश के.डॉडीया)
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शोख ए गझल जब हुस्न पर सवार होता है
उस के अलफाझ गुल बन के बिखर जाते है
बदल जाते है तहेजिब,तौर-तरीके और मिजाज
निगाहे-नरगिस से जैसे जल्वे नूर बिखर जाते है
मौजो की रवानी हौ या छलकता कोइ पैमाना
उनका सामने होना नशे के तोड बन जाते है
गुफतगु मे दिख रहे थे जैसे बुलबुल के साज
नजरो मे खुदा के कुछ छीपे राज दिख जाते है
कभी वो हँसती नज़र आती तो कभी वो उदास
उसकी पनाह मे जिने के अंदाज बदल जाते है
आलम ये था मेरी महेफिल मे ही तन्हा था
ना चाहने पर उन के नजारे सामने आ जाते है
महेफिल मे सिर्फ हौंसला अफजाही काफी नहीं?
उस की एक नजर से गजल के पंख आ जाते है
जब उसको देखा बन गइ मेरी निगाहे-शाहिदबाज़
फ़सूने-नेयाज़ में मेरे तो तेवर बदल जाते है
मुजको अब होंस नही,महेफिल हो या मुशायरा
हर गुल निगाहे-शाहिदबाज़ के मोहताज बन जाते है
(नरेश के.डॉडीया)
(फसूने-नेयाझ्-जादुई अदा)
(निगाहे-शाहिदबाज़-सौन्दर्य के प्रति आसक्त आँखें)
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क्यां मिजाज पाया था वोह सुखे पते ने
इश्क लडाता रहा लगातार बहेती हवा से
जिन चिरागो को बुझना नही आता था
हवाओ ने भी आंधी वाली जलक दिखा दी
उडती वो ओढनी छोटी छॉटी घंटिओ वाली
हर दीन ऐसे गुजरता था जैसे खेले होली
हवाओ के साथ चलते थे हम उनकी गली मे
बैसाखियो का मौसम हमारी जेब मे रखते थे
अब वोह लुत्फ कहा काली घनी झुल्फो का
किया है अब बसेरा बादलो ने मेरी आंखो में
बरस बीते गली छोड़े,मगर है याद वो अब भी
आज भी परदेश मे एक खिडकी खुली सी है
कहा लुत्फ है वो पूराना,इस नये शहर मे
हम ही खो गये अब जानीपहेचाली सडको मे
बहुत दिन बिताये रंगीनियो के उस शहर मे
तकदीर ने भी रुख बदला था हवाओ के साथ
एक हरे भरे घर में ही एक अकेला रहेता हुं
बरसो बाद फिर से खूली है एक पुरानी किताब
(नरेश के.डॉडीया)
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एक दोर ए वकत ऐसे गुजर गया है
जैसे हाथ मे रेत का सरक जाना
एक जवान चांद रोज खिलता रहेता था
थकी हारी आंखे को शकुन मिलता था
बडे खूबसूरत अंदाज से आसमान मे
रात भर उसके जलवे दिखाया करता था
आसमान भी उनको छोटा पडता था जब,
वोह सितारो की फौज लेके आता था
आयनो की हंसी भी छीन लेता ता वो,
जब जब आयने के सामने आता था
सजता संवरतां था ऐसे जैसे कोइ
जल्वा ए नूर की कोइ सौगाद हो
हुस्न का गुरुर आंखो मे लिये कंइ
शायरो का सरेआम कत्ल करता था
वकतने बडा कमबख्त बन के उस
चांद को अपनी लपेट मे ले लिया
वकत के चलते सितारो ने भी चांद का
साथ आहिस्ता आहिस्ता छोड दिया
सफेदी की असरवाला वोह खुश्क चांद
एक छोटे कमरे मे डुबने की कगार पर है
(नरेश के.डॉडीया)
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सांस लेने की भी कहां फुरसत है गरम सांसो को
बेचेनी देकर सुखचेन की लुट करती है तेरी याद.
सागर की लहेरो की तरह उछलती तेरी याद
पागल बना संमदर की जैसी तुफानी तेरी याद.
दिन और रात का कहां फर्क देखती है तेरी याद
दिन को थकीहारी आंखो को थकवाती है तेरी याद.
रात को सपनो मे खुंलखुंला खिलती है तेरी याद
मेरी कविता और गझल को बेफाम दोडाती तेरी याद.
दिलमे चिंगारी लगा के खिल खिल हसती तेरी याद
यादो के घोडो को तेज तरार भगाती तेरी याद.
स्मृतिमे छाया चहेराको सामने लाती है तेरी याद्
जलती हुवी धुप मे पलको की छांव बनके तेरी याद.
बामुलायजा होशीयार कहेकर आती तेरी बादशाही याद
कलेजे में दर्दो की हलचल मचा देती है आती तेरी याद.
यादो के गुलशनमे बहारो की लेहेरे बनके तेरी याद
रंग रंगके फुलो की बिच खिलती कली जैसी तेरी याद.
अता पता ठीकाना पुछे बिना अचानक आती तेरी याद
राहत जैसे होती है और तुफान की तरहा आती तेरी याद.
कैसे मनावु दिल को अचानक मिल के आप चली गइ आज
मिले हो अगर थोडा रुक़ जाओ,फिर रुला देती है तेरी याद.
(नरेश डॉडीया)
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अपनी ही नजरो से वो कुछ गीरने के ख्यालो मे है
कयां हुवा है,बरसो बाद सच के रास्ते पता कर रहे है
दर्द तेरे आसपास बरसो से सांये की तरह घुमतां था
लगता है वोह अब दर्द के सांये का पतां कर रहे है
...
कल तक उस के जहन में उस की दुनिया के ख्याल थे
अचानक क्यां हुवां के वोह तेरे बारे में पतां कर रहे है?
तुं पुरी जिंदगी उन के लिये गझल-कविता लिखतां रहां
आज कल वोह भी शायरो की किताबे का पतां कर रहे है
तेरी मोहल्ले के लोग भी आज-कल हेरत मे रहेते है
शायद वोह गुझरे हुवे लम्हो का फिर से पतां कर रहे है?
लगतां हे के जुनु ए मुहोब्बत को फिर पंख आ गये है?
'नरेन'आज तो परिंदे भी तेरे नाम का पता कर रहे है
(नरेश के.डॉडीया)
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किस तरह गुजरती है मेरी जिंदगी तेरे बिना
आयने के सामने जैसे सदीया गुजरती है
तेरे नाम से शुरू होती सुबह की किरन
बेचेनी मे साम बडी मुश्किल से गुजरती है
...
मेरे ख्वाबो मे एक मंजर उभरता है रात को
पुरी रात तेरी यादो में शुकुन से गुजरती है
तेरे एहसास की खुश्बु सांस मे उभरती है
हवां भी तेरा नाम लेके चमन से गुजरती है
तेरे बगेर सहेमी सहेमी सी रहेती है जिंदगी
लडखडाती जिंदगी फिर भी तेरे बगर गुजरती है
तेरे बगर वोह चिज क्या है जिसे रोशन है आलम
चाहत के सितारो से अभी भी उनकी रात गुजरती है
अब दो आंखो से नजारो मे भी कमी सी दिखती है
'नरेन'चार आंखो बगर अब कहां जिंदगी गुजरती है?
(नरेश के.डॉडीया)
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बडे लंबे इंतजार के बाद मिले हो आप
फिर भी आप से नाराज कयो रहेते है हम?
शब की तनहाइओ मे मौसम कैसे बिता?
आप चेन से सोये ये बात जानते है हम
आप से तो कोइ गुफतुगु नही रहेती थी
अकसर अपने आप से बाते करते थे हम
हजारो मिल दुर तुं,क्यां करती रहेती थी?
शामे गुर्बत की सजा यहां भुगत रहे थे हम
यह बात कुछ और थी आप हमे भूल रहे थे
तेरी कसम,तेरे नाम से जिंदा रहेते थे हम
बडी मुद्दत बाद आप यहां आये हो किस लिये?
ये देखने के लिये,कयुं गझल लिखते है हम?
फस्ल ए गुल तेरे चमन में सामने से आयी है
बस यही खूश्बू लोट आने के इतजार मे थे हम.
(नरेश के.डॉडीया)
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गुफतुगु चलती होगी गुल और भवरे के बिच
जरुरु गुलशन मे तेरे जाने की असर होगी?
गुफतुगु चलती होगी दो जुलती शाखो के बिच
जरुर तुं गुलशन मे बलखा के निकली होगी?
...
गुफतुगु चलती होगी दो फरिश्तो के बिच,
जरुरु उसके जहन मे हुस्न की बात निकली होगी?
गुफतुगु चलती होगी अवदे-पुरैय्या के बिच,
जरूर तेरी खूबसूरती से उस को जलन होती होगी?
गुफतुगु चलती होगी दो बादलो के बिच
जरुरु तुं छत पे बालो को सुखा ने गइ होगी?
गुफतुगु चलती होगी महेफिल मे शायरो बिच
जरुरु शायरो मे तेरी बात दबीदबी सी निकली होगी?
गुफतुगु चलती होगी तेरे दो नैनो के बिच
जरुरु मेरे नैनो की गुस्ताखी माफ की होगी?
(नरेश के.डॉडीया)
(अवदे-पुरैय्या - तारो का समुह)
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अपनी झुल्फो को साने पे गीराया ना करो
झुल्फो के सांये मे रहेने का लम्हा बित चुका
अपनी आंखो को कहो जुक के पेस आये
नजरे मिलाने का शोख जहन से बित चुका
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अपनी शोख अदा को कहो काबुं मे रहे
हुस्नवालो की वाह-वाह का मौसम बित चुका
अपने लबो को कहो गुलो को बिखेरा ना करे
चमन मे बहारो के दोरे का मौसम बित चुका
अपनी यादो को कहो तमीझ से पेस आये
बदतमीझी से पेस आने का मौसम बित चुका
(नरेश के.डॉडीया)
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शाम भी अब शाम जैसी लगती है तेरे बगैर
तुं अगर आये तो रात को तारो की बारात आ जाये
उदासी मे चडा हुआ मुंह लेकर डुब जाता है सुरज
तुं अगर आये तो सुबह में खुशियों की लाली फिर छा जाए
मोर-पपीहे भी बेवकत बेसुरी आवाज़े निकालते है
तुं अगर आ तो आवाज़े में संगीत का जादु छा जाए
वोह शोरोगुल कायनात के कारनामे हुवा करता था
तुं अगर आये तो सौंदर्य कां ज़र्रा फिर से छलक जाए
चमन में गुलो के चहेरे पे कुछ अरसे मायुसी छायी है
तुं अगर आये तो चमन में फिर बहारो मौसम आ जाए
कुछ अरसे से हुस्न के मायेने कयां है वोह भूल गया हु
तुं अगर आये तो हुस्न की जिंदा मिसाल सामने आ जाए
यह अपाहिज वकत कंधे पे उठाकर थक गया हुं
तु अगर आये तो अपाहिज वकत के पैरों मे जान आ जाये
(नरेश के.डॉडीया)
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गलत नही थे जमाने के अशुल ऐ साकी
बस थोडी सी पिला दे जमाने को दि माफी
उदासी के सबब सब चले आते है मैयकश
चुन लिया नबी मैयखाने मे,खुदा तु दे माफी
...
यहां ना कोइ मझहब है,सब अपने है काझी
रसुल हो या राम, दे हमे बंदगी से माफी
यहां असली-नकली की कोइ पहेचान नही है
पीने वालो को खुदापाक से मिलती है माफी
छेडे जाते तराने हर तरह के होठो से लगा के
रामधुन गाये तो भी शेख को मिलती है माफी
यहां का हर बंदा का इमान है बडा पाक-साफ
शराब से हर कोम के बंदे को मिलती है माफी
सब को प्यार का एक जाम पिला दे साकी
कुछ पल शुकुन मिले,जिल्लत से मिले माफी
(नरेश के.डॉडीया)
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मेरे चहेरे पे रात रात भर निगाहे जमाता रहा
जैसे मेरी आंखो मे होठो से गझल लिखता है
मेरे बालो को अपने हाथो से युं उलजाता रहा
जैसे कोइ बादल हवा के साथ इश्क लडाता है
मेरे साने पे रातभर वोह सर रख के सो रहा
जैसे कुछ अजीब तरीके से ख्वाब देख रहा है
उस की मौजुदगी मेरी निंद को दुर खिंच गइ
जैसे मेरी सांसो मे वोह जान भर रहा है
शोख लम्हो का पता लिख दिया मेरे गालो पे
जैसे कोइ भंवरां ताजी कलि को चुम रहा है
मुज पे एक तरफा कयामत का असर रहा
मेरी खुल्ली आंखो मे वोह चेन से सोता है
कभी आया था मेरी पनाह मे संमदर बन के
आज वोह नदी के साथ प्यार से बहेता है
(नरेश के.डॉडीया)
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लगता है उस के अंदांज पंसदीदा बन रहे थे
वोह् रुह को शकुन् आये ऐसी नजरो से देखते है
निगाहो का लुफत जैसे मुजे दावत दे रहा था
लगता है वोह् खुद को मेरी नजरो से देखते है
सुना है उस हुस्न को सजने संवरने का शोख है
लोग उसे आंखे भर के मेरी नजरो से देखते है
होश में अब भी मेरा दिल कहां सहलता है
इश्क़ को अब हम आप की नजरो से देखते है
दिवानगी अब तेरी हद से गुजर गइ है'नरेन'
पता है लोग तुजे फरिस्तो की नजरो से देखते है
(नरेश के.डॉडीया)
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शुकुन से रात भर कोन आशिक सोता रहेगा
सपनो भी चेन कहां तुजे,तुं हरदम तडपता रहेंगा
मीठी मीठी बातो में उसकी तुं उलज गया था
वोह तो वादाशिकन है,फिर भी इंतजार करता रहेगा
बात किस्मत की थी,एक लकिर मुड गइ थी
उन की आगोश में तुं मरने की दुआ करतां रहेगा
नही आसान लगता है,हिज्र मे जिने का तरीका
जिने के लिये तुं नये मयखाना का पता ढुंढता रहेगा
दर्द का कयां है?वो तो रात भर रुलाता रहेगा
वोह् आए के ना आए,'नरेन'गझल लिखता रहेगा
(नरेश के.डॉडीया)
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में अपने हिस्से की अधुरी बाते कहेने आया हुं
वोह बात पुरी करने की ख्वाहीस लेकर आया हुं
लोग अकसर मिलते है अधुरी कहानिया जैसे
मेरी कहानिया का हिस्सा आप से जोडने आया हु
शुकुन ढुंढता रहेता था रातभर जागती आंखो मे
शुकुन की कुछ राते आप से उधार लेने आया हुं
वकत के साथ कुछ खूबसूरत पल खो चुका था
उस खूबसूरत पल को आप से मांगने आया हुं
एक पुराने सफर में मेरा हमसफर बिछड गया था
आप को हमसफर बनाने का ख्वाब लेकर आया हुं
मंजील मिले या ना मिले हमे तो चलते जाना है
आखरी मंजील तक आप का साथ मांगने आया हुं
(नरेश के.डॉडीया)
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मंदीर,मस्जिद में मांगु तो दे नही शकता है
तु जो दे शकता है वोह में ले नही शकतां
चदर और प्रसादी में जो दुवा मिलती है
मगर'नरेन'उसे कबुल नही कर शकतां
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रुक़ता नही है ये यादो का कांरवा जब से चला
आखरी मंजील आप के कदमो मे बनाना चाहता हुं
मिलो दुर रहेके वोह भी अकसर तन्हा रहेते है
अब तनहा रहेने की आदत बदलना चाहता हुं
अब तो वोह् ख्वाबो में भी मिलने को इतराते है
अब में ख्वाबो को हक्कीत में बदलना चाहता हुं
जब से बिछडे हो आप मुज से कुछ अरसा हुवां
अब में आपको मेरी आंखो के सामने चाहता हुं
दिन रात जो गुजारे है तनहाइओ मे अनगिनत
वोह हर पल का हिसाब वसुल करना चाहता हु
में अब मुसाफीर की तरह ठहेरना नही चाहता
आखरी मकां आप के दिल में बनाना चाहता हु
(नरेश के.डॉडीया)
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कागज में बडी मस्कत के बाद भी कुछ लिख नही पाता
प्यार से मेरे सामने वोह मुश्कुराती है,पहेला शेर बन जाता है
आखो मे पानी निकल आता है कुछ अलफाज नही मिलते
आहिस्ता मेरे कंधे पे सर रखती है,दुसरा शेर बन जाता है
...
अकसर लिखते लिखते थकीहारी आंखे शुकुन से बंध होती है
चुपके से वोह बालो मे हाथ डालती है,तीसरा शेर बन जाता है
थकीहारी कलम अकसर कागज के बिस्तर पे लेट जाती है
जादुगरनी कलम को मुह में दबाती है,चोथा शेर बन जाता है
बडी मस्कत के बाद के बाद भी जहन में ख्याल नही आता है
मेरे सामने वोह बालो को खोलती है,पांचवा शेर बन जाता है
फिर वोह मुजे चाय का पुछ के चाय बनाने किचन मे जाती है
जादुगरनी की चाय की खूश्बू मेरी गझल का जायका बन जाता है
(नरेश के.डॉडीया)
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मुशयरो के ख्यालो में ओफिस आना जाना अच्छा नही लगता
शायराना शोख है फिर अलफाज कयो जहन से ताल्लुक रखते है?
खिदमतदारी बहुत कर ली सब सरकारी दफतरो में अफसरो की
ऐसे दोस्तो को ढुंढो जो तुम्हारे दिल के दर्द से ताल्लुक रखते है
कागज की कश्ती में सफर करने का होंसला तुने बुंलद कर लिया
कश्ती चलाने वाले बुढे नाखुदा अब भी सुकान से ताल्लुक रखते है
शायरो की दुनिया में कतरे है जो समुंदर के ख्यालो में जिते है
बचके रहेना कतरो से जो कश्ती को डूबोने से ताल्लुक रखते है
'नरेन'यह गझल का शोख लहु और अश्को से ताल्लुक रखता है
तुम शायर हो के फुलो की जगह नोटॉ से ताल्लुक रखते हो?
(नरेश के.डॉडीया)
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खामाशी का एक जवालामुखी आंखो से उभर रहा था
वोह कुछ लम्हो को आहिस्ता आहिस्ता हलाल करता था
रिश्तो की बारात में से सब बाराती विदा हो रहे थे
बंध पेकेट में खुशीयो का नजराना नजर आ रहा था
...
उस बंद पेकेट को एक के बाद एक खोलना शुरुं किय़ा
पेकेट खोल के देखा तो नजराना रि-पेक किया गया था
हर एक उम्मीदो की शाखे कट रही थी सुहागरात मे
खूशी का एक फुल सुनी सेज पे सुबह मे रो रहा था
खामोसी भी कयां है वोह समजाने मे कुछ अरसे लगे
मेरे कमरे में उम्मीदो की खिडकी को खोलना मना था
अकसर लोग उम्मीदो पे रोज रोज मुस्कुराया करते थे
लेकिन यहां औरत को शादीवाले दिन रोना पडता था
(नरेश के.डॉडीया)
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हलकी सी निंद और ख्वाबोके बीच आप का रुक जाना
तेरे ख्वाब का रीश्ता पुराना और,मेरा जाग जाना
बंध आंखो मे तेरा वजुद,खुली आंखो मे भी तेरा वजुद
बावजुग में क्यां करूं?तेरे असर से बच के कहा जाना?
दोस्तो की खातिर दो चार घुटभी पी लेते है अकसर
तेरे हाथ से जो मजा था वोह मजा नही ये हमने जाना
मन को बेहलाने चल पडते है कदम चमन की और
वहां गुलो को तेरी जलन होती है ये भी हमने जाना
मजा मिलनेमे था या तेरा सपनो रातभर रुकजाना
दिवानगी का ये ही तो मजा है मिल के भी बिछड जाना
पता हमे भी चला है के,आपकी आंखोमे लम्हा ठहेरा
जागते है हम आप की आंखो मे ये हमने आज जाना
(नरेश के.डॉडीया)
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जुठे अलफाजो से मुजे तस्सली ना दिया करो
कभी आ के नाजुक वकत को शुकुन दिया करो
हमारे प्यासे दिल को ना और तरसाया करो
शाहिल से नदी का मुख युं ना मोडा करो
गुजरे हुवे वकत की तरहा याद ना आया करो
बिते जमाने को लम्हो मे तस्सली ना दिया करो
ख्वाबो में तुंम सांये की तरह् आया ना करो
आना है तो सुरज की रोशनी तरह छाया करो
पलको में रहेना है तो आंसु बन के ना रहो
दिल में रहेनां है तो हमे किराया दिया करो
(नरेश के.डॉडीया)